Gulzar Speaks - Tarkieb

Lyrics

मुझको भी तरकीब सीखा कोई यार जुलाहे
 अक्सर तुझको देखा है की ताना बुनते
 जब कोई तागा टूट गया
 या ख़तम हुआ
 फिर से बाँध के और सिरा कोई जोड़ के उसमे
 आगे बुनने लगते हो
 तेरे इस ताने में लेकिन
 इक भी गाँठ गिरह बुनतर की
 देख नहीं सकता है कोई
 मैंने तो इक बार बुना था एक ही रिश्ता
 लेकिन उसकी सारी गिरहें
 साफ़ नज़र आती हैं मेरे यार जुलाहे
 मुझको भी तरकीब सिखा कोई यार जुलाहे
 

Audio Features

Song Details

Duration
00:46
Key
7
Tempo
130 BPM

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