Gulzar Speaks - Khwab

Lyrics

सुबह सुबह इक ख्वाब की दस्तक पर दरवाज़ा खोला देखा
 सरहद के उस पार से कुछ मेहमान आये हैं
 आँखों से मानुस थे सारे
 चेहरे सारे सुने सुनाए
 पाँव धोए हाथ धुलाए
 आँगन में आसन लगवाए
 और तंदूर पे मक्की के कुछ मोटे मोटे रोट पकाए
 पोटली में मेहमान मेरे
 पिछले सालों की फसलों का गुड़ लाए थे
 आँख खुली तो देखा घर में कोई नहीं था
 हाथ लगाकर देखा तो तंदूर अभी तक बुझा नहीं था
 और होठों पे मीठे गुड़ का जायका अब तक चिपक रहा था
 ख्वाब था शायद
 ख्वाब ही होगा
 सरहद पर कल रात सुना है चली थी गोली
 सरहद पर कल रात सुना है
 कुछ ख्वाबों का खून हुआ है
 

Audio Features

Song Details

Duration
01:03
Key
2
Tempo
118 BPM

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