Zindagi Kya Hai

Lyrics

आदमी बुलबुला है पानी का
 और पानी की बहती सतह पर
 टूटता भी है, डूबता भी है
 फिर उभरता है, फिर से बहता है
 ना समंदर निगल सका इसको
 ना तवारीख़ तोड़ पाई है
 वक्त की मौज पर सदा बहता
 आदमी बुलबुला है पानी का
 ♪
 ज़िंदगी क्या है जानने के लिए
 ज़िंदा रहना बहुत ज़रूरी है
 आज तक कोई भी रहा तो नहीं
 ♪
 सारी वादी उदास बैठी है
 मौसम-ए-गुल ने ख़ुदकुशी कर ली
 किसने बारूद बोया बाग़ों में?
 ♪
 आओ, हम सब पहन लें आईने
 सारे देखेंगे अपना ही चेहरा
 सब को सारे हसीं लगेंगे यहाँ
 ♪
 है नहीं जो दिखाई देता है
 आईने पर छपा हुआ चेहरा
 तर्जुमा आईने का ठीक नहीं
 ♪
 हम को Ghalib ने ये दुआ दी थी
 तुम सलामत रहो १००० बरस
 ये बरस तो फ़क़त दिनों में गया
 ♪
 लब तेरे Meer ने भी देखे हैं
 पंखुड़ी एक गुलाब की सी है
 बातें सुनते तो Ghalib हो जाते
 ♪
 ऐसे बिखरे हैं रात-दिन, जैसे...
 मोतियों वाला हार टूट गया
 तुम ने मुझ को पिरो के रखा था
 तुम ने मुझ को पिरो के रखा था
 

Audio Features

Song Details

Duration
04:56
Key
7
Tempo
86 BPM

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